Evidence Act Section 3 एक बात में मिथ्या तो सब में मिथ्या
एक बात में मिथ्या तो सब में मिथ्या धारा 3 भारतीय साक्ष्य अधिनियम
1. एक बात में मिथ्या तो सब में मिथ्या धारा 3 -- साक्ष्य का मूल्यांकन “एक बात में मिथ्या तो सब में मिथ्या" यह सूत्र भ में लागू नहीं होता साक्षियों के साक्ष्य का भाग जब संतुष्टिकारक पाया जाए तो वह स्वीकार किया जाना चाहिये चाहे अन्य भाग नामंजूर कर दिया जाए। कुमेरसिंह और अन्य बनाम मध्यप्रदेश राज्य, 2007 (4) MPHT 585 (DB).
2. धारा 3 साक्ष्य का मूल्यांकन आपराधिक मामला एक बात में मिथ्या तो सब में मिथ्या होने की सूक्ति लागू नहीं होती। कुलविन्दर सिंह बनाम पंजाब राज्य, AIR 2007 SC 2868 = 2007 Cri LJ 4290 (SC) = 2007 AIR SCW 5215 = 2007 (3) Crimes 322 = 2007 (9) Scale 621.
3. धारा 3- धारा 3 के अधीन दोषसिद्धि सूक्ति “एक बात में मिथ्या तो सब में मिथ्या"- की प्रयोज्यता मृतक का भाई, जो कि चक्षुदर्शी साक्षी था, का बयान कुछ बातों में अविश्वसनीय यदि अन्यथा विश्वसनीय होना पाया जाता है तो उसके साक्ष्य को अमान्य नहीं किया जा सकता - यदि अन्य चक्षुदर्शी साक्षीगण उनके साक्ष्य के किसी भाग की बाबत पक्षद्रोही हो गए हैं तो इससे उनके साक्ष्य का वह भाग अमान्य नहीं किया जा सकता जो तर्कपूर्ण एवं विश्वसनीय हो भा.द.सं. की धारा 326 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिये अधिनिर्णति दस वर्ष के कारावास को पाँच वर्ष के अभिरक्षात्मक दण्डादेश के रूप में कम किया गया। गुब्बाला वेणुगोपालास्वामी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य AIR 2004 (Supp.) SC 2477.
4. धारा 3 सूक्ति "एक बात में मिथ्या तो सब में मिथ्या" प्रयोज्यता उक्त सूक्ति विधि का नियम नहीं अपितु सावधानी का एक नियम है भारत में प्रयोग्य नहीं 2003 ए.आई.आर. एस. सी.डब्ल्यू. 3984 तथा 2004 ए.आई.आर. एस. सी.डब्ल्यू. 6916 अवलम्बित कालेगुरा पदमा राव बनाम आंध्रप्रदेश राज्य, AIR 2007 SC 1299.
5. धारा 3 सूक्ति "एक बात में मिथ्या तो सब में मिथ्या" लागू होना उक्त सूक्ति भारत में लागू नहीं होती न्यायालय का यह कर्त्तव्य है कि वह भूसे से अनाज को अलग करे - यदि अनाज से भूसा अलग किया जा सकता हो तो न्यायालय द्वारा किसी अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जा सकता है फिर चाहे अन्य अभियुक्त व्यक्तियों के अपराध को सिद्ध करने के लिये साक्ष्य अपर्याप्त हो। गोविन्द बनाम मध्यप्रदेश राज्य, 2005 Cri LJ 12447 (MP) = 2005 (1) MPLJ549 2005 (1) Crimes 128.
6. धारा 3 सूक्ति “एक बात में मिथ्या तो सब में मिथ्या अंशतः विश्वसनीय एवं अंशत: अविश्वसनीय साक्ष्य न्यायालय को स्वीकार्य सत्यता के अनाज को ऐसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किये जाने एवं अस्वीकार्य की जाने वाली असंभाव्यताओं के भूसे से अलग करना होता है उक्त सूक्ति ठीक नहीं क्योंकि ऐसा साक्षी मुश्किल से ही होता है जिसके साक्ष्य में लेशमात्र भी झूठ या बढ़ाचढ़ाकर पेश किया जाना न हो। राकेश पिता मोहन और अन्य बनाम राज्य, 2004 Cri LJ 3540 (All) = 2004 (49) All Cri C 82 = 2004 All LJ 2093.
6. धारा 3 सूक्ति “एक बात में मिथ्या तो सब में मिथ्या" सामान्य तौर पर स्वीकार्य नहीं - विचारण न्यायालय ने सह-अभियुक्तों के लिप्त होने पर विश्वास नहीं किया तो इसका यह अर्थ नहीं है कि अपीलार्थियों की लिप्तता के बारे में भी उनका साक्ष्य निरस्त किया जाए। भोजराज और अन्य बनाम राजस्थान राज्य, 2004 CriLJ 4738 (Raj) = 2004 (3) Raj LR 581.
7. धारा 3 एक प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के साक्ष्य के एक अंश पर विश्वास नहीं किया गया महज इसलिए इसका तात्पर्य यह नहीं होगा कि न्यायालय उसके समस्त साक्ष्य को अस्वीकृत करने के लिए बाध्य है। राकेश कुमार बनाम मध्यप्रदेश राज्य, 2004 (4) MPLJ 502.
8. धारा 3 विचारण में सुधारी हुई परिसाक्ष्य साक्षी की परिसाक्ष्य का एक भाग अविश्वसनीय एवं बाकी विश्वास किये जाने योग्य जो अभियुक्त का अपराध सिद्ध किये जाने के लिये पर्याप्त -- उस पर दोषसिद्धि की जा सकती है। होतम और अन्य बनाम राजस्थान राज्य, 2004 CriLJ3277 (Raj) 2004 (2) WLC 69 = 2004 (1) Raj LR 858 = 2004 (2) Raj Cri C 855.
9. धारा 3-- साक्षी की विश्वसनीयता साक्षी के परिसाक्ष्य के कुछ अंश झूठे पाए गए महज इसलिए उसके संपूर्ण कथन को अस्वीकार करना उचित नहीं होगा । रामबरण सिंह बनाम मध्यप्रदेश राज्य, 2005 (4) MPLJ 202.
10. धारा 3 हत्या का मामला साक्ष्य का बड़ा भाग अपर्याप्त कई सह-अभियुक्त दोषमुक्त किये गए -- साक्ष्य का बाकी भाग अभियुक्त के अपराध को साबित करने वाला उसके आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जा सकता है। कालेगुरा पदमा राव बनाम आंध्रप्रदेश राज्य, AIR 2007 SC 1299.

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