Indian Evidence Act 1872 साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 6 रेस जेस्टे
साक्ष्य
अधिनियम 1872
(Indian Evidence Act 1872) की
धारा 6
रेस
जेस्टे
साक्ष्य अधिनियम को बनाने का उद्देश्य साक्ष्यों के संबंध में विधि को सहिंताबद्ध करना है, जिसके माध्यम से मूल विधि के सिद्धांतों तक पहुंचा जा सके। साक्ष्य अधिनियम के माध्यम से ही इतने सारे अधिनियम बनाए गए हैं, उनके लक्ष्य तक पहुंचा जाता है। साक्ष्य अधिनियम के बिना अभियोजन चलाने की कल्पना नहीं की जा सकती है। साक्ष्य अधिनियम 1872 में निर्माण से आज तक सबसे कम संसोधन हुए है।
क्या
है रेस जेस्टे का सिद्धांत :
साक्ष्य
विधि में रेस जेस्टे के सिद्धांत
का बहुत महत्वपूर्ण है तथा
यह सिद्धांत विश्व भर की साक्ष्य
विधियों में प्रथक-प्रथक
नामों से लागू किया गया है।
साक्ष्य
अधिनियम 1872
(Indian Evidence Act 1872) की
धारा 6
के
अनुसार,
एक
ही संव्यवहार के भाग होने वाले
तथ्यों की सुसंगति-
'जो
तथ्य विवाधक न होते हुए भी
किसी भी विवाद्यक तथ्य से उस
प्रकार संसक्त है कि वे एक ही
संव्यवहार के भाग हैं,
वे
तथ्य सुसंगत है,
चाहे
वे उसी समय और स्थान पर या
विभिन्न समय और स्थान पर घटित
हुए हैं।'
साक्ष्य
अधिनियम की धारा 6
के
अनुसार कोई तथ्य विवाद्यक ना
होकर भी यदि किसी एक व्यवहार
का हिस्सा है तो सुसंगत माना
जा सकता हैं। रेस जेस्टे का
शाब्दिक अर्थ है संबंधित
तथ्य।
तथ्य जो किसी एक ही संव्यवहार
के भाग माने जाते हैं। जैसे
किसी भी घटना के लिए अलग-अलग
तथ्य होते हैं,
ये
तथ्य किसी एक संव्यवहार का
हिस्सा होते हैं। ये सब आपस
में जुड़ते हैं और कोई एक
संव्यवहार का निर्माण करतें
है।
इसको
उदाहरण के माध्यम से समझा जा
सकता है :
जैसे
कि Aने
एक चाकू Bसे
खरीदा,
खरीदने
के बाद उसने इस चाकू से C
की
हत्या कारित की। A
चाकू
खरीदने किसी अन्य स्थान गया
वहां से चाकू खरीद कर लाया।
किसी अन्य स्थान पर उसने C
के
हत्याकांड
की। C
की
हत्या A
द्वारा
उसी चाकू से की गई जिस चाकू को
उसने B
से
किसी प्रतिफल के बदले खरीदा
था। B
से
चाकू खरीदना,
चाकू
खरीदने B
के
नगर जाना,
उसके
बदले B
को
प्रतिफल देना,
किसी
अन्य स्थान पर जाकर C
की
हत्या करना यह सब कुछ सुसंगत
तथ्य है। इन सभी का केवल एक ही
लक्ष्य है,
इससे
यह सभी एक ही संव्यवहार के भाग
हैं तथा सब तथ्य मिलकर किसी
एक लक्ष्य को भेदना चाहते हैं।
एक
संव्यवहार C
की
हत्या कारित करना है। A
का
B
से
चाकू खरीदना तथा उसे प्रतिफल
के बदले कुछ देना यह तो सिद्ध
नहीं करता है की A
द्वारा
C
की
हत्या की गई है,
परंतु
यह सिद्ध जरूर करता है कि
A
का
चाकू खरीदने का आशय किसी व्यक्ति
को क्षति पहुंचाना ही था,
क्योंकि
चाकू का क्रय करना भारत की
सीमाओं के भीतर अपराध है। A
द्वारा
ऐसा अपराध कारित किया गया।
इसका आशय यह था कि वह किसी को
क्षति पहुंचाना चाहता था। इस
धारा का सिद्धांत यह है कि,
जब
कोई संव्यवहार जैसे कि कोई
संविदा या अपराध विवाधक तथ्य
हो तो प्रत्येक ऐसे तथ्य का
साक्ष्य दिया जाता है,
जो
उसी संव्यवहार का एक भाग है।
रेस
जेस्टे शब्द भारतीय साक्ष्य
अधिनियम की धारा 6
में
प्रयोग नहीं किया गया हैं
क्योंकि यह सिद्धांत अनिश्चितता
को जन्म देता है। यह शब्द लेटिन
भाषा का है जिसका अर्थ है-'जो
काम किया गया है'
तथा
अंग्रेजी में इसका अर्थ यह
होगा कि 'ऐसे
कथन तथा कार्य जो किसी संव्यवहार
के साथ हुए हैं।'
न्यायालय
के सामने आने बालें मामलों
में कोई ना कोई घटना छिपी रहती
है। प्रत्येक घटना से जुड़े
हुए कुछ कार्य या लोप तथा कुछ
कथन होते हैं। ऐसा कार्य या
कथन जिससे संव्यवहार की प्रकृति
का कुछ प्रकाश पड़ता है या जो
उसके सही रूप को दर्शाता है
उसे संव्यवहार का भाग कहा जाता
है,
इसका
साक्ष्य दिया जा सकता है।
अर्थात A
ने
कोई चाकू B
से
खरीदी थी इसका साक्ष्य दिया
जा सकता है।
साक्ष्य
अधिनियम की धारा 6
के
अंतर्गत महत्वपूर्ण मामला
है,
इसे
'Ratan
vs Keen'
का
है। इस मामले में एक व्यक्ति
पर अपनी पत्नी की हत्या का
आरोप था। उसका कहना था कि गोली
दुर्घटनावश चल गई थी। एक साक्ष्य
यह था कि अभियुक्त की पत्नी
ने टेलीफोन मिलाया और ऑपरेटर
लड़की से कहा-मुझे
पुलिस दीजिए। ऑपरेटर अभी कुछ
भी नहीं कह पाई थी कि स्त्री
जो बहुत तकलीफ से बोल रही थी,
उसने
जल्दी से अपना पता बताया और
कॉल ठप हो गई। ऑपरेटर ने पुलिस
को सूचित कर दिया। पुलिस वहां
पहुंची और स्त्री का शव वहां
पर पाया गया। उसके द्वारा
टोलीफोन करना और पुलिस मांगना,
उसकी
हत्या के संव्यवहार का भाग
माना गया। यह माना गया कि घबराहट
की हालत में उसका टेलीफोन
करना,
उसकी
हत्या की आशंका को दर्शाता
है। यह घटना दुर्घटनावश नहीं
थी,
किसी
दुर्घटना से पीड़ित होने वाला
व्यक्ति सपने में भी नहीं सोच
सकता कि वह दुर्घटना से पहले
ही पुलिस बुला ले।
यह
न्यायालय को प्रत्येक संव्यवहार
के सभी आवश्यक अंग ध्यान में
लेने के अनुज्ञा देता है। रेस
जेस्टे में कथन का महत्व-
अधिनियम
धारा 6
के
अंतर्गत तथा इस सिद्धांत के
अंतर्गत अत्यधिक है। सिद्धांत
के अंतर्गत या माना गया है कि
यह कथन संव्यवहार से बिल्कुल
जुड़ा होना चाहिए। कथन और
संव्यवहार के बीच में इतनी
लंबी दूरी नहीं होना चाहिए
कि कथन पर विश्वास करने के
संबंध में संशय होने लगे। इस
संबंध में Janteba
B Rao vs State of A.P. A.I.R. 1996
SC
2791
का
एक अच्छा प्रकरण है। इस मामले
में एक बस में आग लगा दी गई थी,
जिसमें
कई लोग घायल हुए थे जिन्हें
अस्पताल पहुंचाया गया था।
मजिस्ट्रेट ने इनके कथन लिखे।
इन कथनों को एक ही संव्यवहार
में नहीं माना गया क्योंकि
घटना के काफी समय पश्चात ये
दर्ज किए गए।
R
vs Bending field
के
मामले में ऐसे कथनों का महत्व
बताया गया है। जहां एक घायल
महिला कमरे से निकली और निकल
कर उसने कहा-ओ
माय डिअर चाची देखिए बैंडिंगफील्ड
ने मेरा क्या हाल किया। महिला
का गला कटा हुआ था,
परन्तु
इस घटना के बहुत देर बाद वह
कमरे से निकल कर आयी और उसमें
अपनी चाची को यह कथन कहा।
न्यायलय ने इस कथन को ग्राह
नहीं माना इस तथ्य को सुसंगत
भी नहीं माना गया।
R
M Malkani vs State of Maharashtra
के
प्रकरण में उच्चतम
न्यायालय ने यह निर्णीत किया
कि जब कोई ऐसी बातचीत चल रही
हो जो किसी व्यवहार का भाग
होने के नाते से सुसंगत है और
यदि उसे तत्काल टेप कर लिया
गया हो तो ऐसी टेप सुसंगत होगी।
एक वारदात जिसमें एक महिला
बंदूक की गोली से मृत्यु को
प्राप्त हुई,
उसने
घटना के कुछ ही समय पूर्व चीख
कर कहा था कि,
उसके
पास कोई व्यक्ति बंदूक लिए
खड़ा था। यह कथन समय के हिसाब
से घटना के इतना निकटतम था कि,
उसे
संव्यवहार का भाग माना गया।

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