Burden of proof सबूत का भार

क्या होता है सबूत का भार? जानिए साक्ष्य अधिनियम


'सबूत का भार'


    'सबूत का भार' का नियम अत्यंत महत्व है। सबूत का भार सिद्धांत साक्ष्य अधिनियम के मूल सिद्धांतों में से एक है। सबूत का भार सिद्धांत की परिभाषा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 101 में दी गई है, जिसके अनुसार - सबूत का भार किस व्यक्ति पर होगा यह बताया गया है। परिभाषा के अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य को साबित करने के लिए आबद्ध है, तब यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति पर सबूत का भार है। प्रत्येक पक्षकार को ऐसे तथ्य साबित करने होते हैं जो उसके पक्ष तथा दूसरे पक्षकारों के विपक्ष में हो |
    साक्ष्य अधिनियम की धारा 101 के अंतर्गत "जो कोई न्यायालय से यह चाहता है कि वह ऐसे किसी विधिक अधिकार या दायित्व के बारे में निर्णय दे, जो तथ्यों के अस्तित्व पर निर्भर है, जिन्हें वह प्राख्यान करता है, उसे साबित करना होगा कि उन तथ्यों का अस्तित्व है। जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य का अस्तित्व साबित करने के लिए आबद्ध है तब यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति पर सबूत का भार है।"
इस प्रकार जो पक्षकार किसी तथ्य के अस्तित्व के बारे में न्यायालय का समाधान करवाना चाहता है और उसके के आधार पर निर्णय चाहता है, ऐसे तथ्य को साबित करने का भार उसी पर है। यदि अ संपत्ति इस आधार पर काबिज से प्राप्त करना चाहता है कि वह संपत्ति का मालिक है तो उसे अपने स्वत्व के अस्तित्व को साबित करना पड़ेगा। इसी प्रकार यदि अ न्यायालय में किसी व्यक्ति को किसी अपराध में सजा दिलवाना चाहे तो उसको सिद्ध करना होगा कि, वह व्यक्ति (जिसे वह सजा दिलाना चाहता है) अपराध का दोषी है।गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा है कि इनमें एक आवश्यक भेद है सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जिसे कोई तथ्य साबित करना होता है और यह कभी बदलता नहीं है, परंतु साबित करने का भार का स्थान बदलता रहता है।साक्ष्य के मूल्यांकन में इस का भार लगातार बदलता रहता है। किसी भी वाद तथा कार्यवाही में साबित करने का भार निरंतर बदलता रहता है। यह भार कभी किसी पक्षकार पर और कभी किसी पक्षकार निरंतर अपना स्थान बदलता है। सबूत का भार किस पक्षकार पर होता है यह धारा यह ध्यान आकर्षित करती है कि - अगर किसी भी ओर से साक्ष्य ना दिया जाए तो जिस पक्षकार का दावा विफल हो जाएगा उसी पर साबित करने का भार होता है।
    अगर क ने ख पर उधार धन वसूली और मध्यवर्ती लाभ के लिए कोई वाद दायर किया है तो अगर कोई भी पक्षकार साक्ष्य ना दे पाए तो क का दवा विफल हो जाए, इसलिए क पर साबित करने का भार है।
    साक्ष्य अधिनियम की धारा 102 के अनुसार "किसी वाद या कार्यवाही में सबूत का भार उस व्यक्ति पर होगा जो असफल हो जाएगा यदि दोनों में से किसी भी ओर से कोई भी साक्ष्य न दिया जाएं।" सबूत के भर से संबंधित महत्वपूर्ण प्रकरण के एम नानावती बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र का है जिसमे बीवी के प्रेमी की गोली मारकर उसके पति द्वारा हत्या की गई थी। महिला का पति नेवल ऑफिसर था। उसकी बीवी ने जारकर्म की संस्वीकृति की थी उसने बताया था कि उसका प्रेमी उसके घर आया तथा वह दोनों पति द्वारा रंगे हाथों पकड़े गए थे। पति ने अपनी रिवाल्वर निकाली तथा गोली अचानक चल गई। गोली चलने से प्रेमी आहूजा की मौके पर मृत्यु हो गई। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि यह दर्शाने का भार अभियुक्त पर था कि, उनका संघर्ष हुआ, कि गोली या तो अचानक चल गई या आत्मरक्षा में चलाई गई। उसे दोषी पाया गया क्योंकि ऐसी कोई बात साबित नहीं कर पाया था।
    मेवा देवी बनाम रामप्रकाश के मामले में एक कार के द्वारा दो व्यक्तियों को कुचल दिया गया था। कार के मालिक का यह कहना था कि स्टेरिंग तथा ब्रेक के फेल हो जाने के कारण दुर्घटना हुई थी। न्यायालय ने कहा कि उसे ही यह साबित करना होगा और यह भी कि उसने गाड़ी सड़क के योग्य बचाए रखने के लिए उचित सावधानी बरती थी। यहां पर इस प्रकरण के द्वारा न्यायलय ने स्पष्ट बताया है कि यदि व्यक्ति अपवाद के सहारे बचना चाहता है तो उसको अपवाद को सिद्ध करने का भार उसी व्यक्ति पर होगा जो अपवाद के माध्यम से लाभ लेना चाहता है। यदि कार ब्रेक फेल होने का कारण लोगों पर चढ़ी थी और इसी के कारण लोगों की जान गई तो साबित करने का भार कार मालिक पर होगा उस व्यक्ति पर होगा जिस पर अभियोजन चलाया जा रहा है या जिस पर प्रतिकर के लिए मुकदमा लाया गया है।प्रबोध कुमार दास बनाम प्रफुल्ल कुमार दास के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि वसीयत के मामले में शुरू में साबित करने का भार उसी व्यक्ति पर होता है जो इसका लाभ लेना चाहता है। संदेह उत्पन्न करने बाली दशा में यह और भी भारी हो जाता है। एक वसीयत का सही होने कोलकाता उच्च न्यायालय इस कारण मान लिया था कि वसीयतकर्ता नि संतान था एवं अपने अंतिम दिनों में भाई के लड़के के साथ रह रहा था।



Comments

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