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Showing posts from January, 2020

Burden of proof सबूत का भार

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क्या होता है सबूत का भार? जानिए साक्ष्य अधिनियम ' सबूत का भार '      'सबूत का भार' का नियम अत्यंत महत्व है। सबूत का भार सिद्धांत साक्ष्य अधिनियम के मूल सिद्धांतों में से एक है। सबूत का भार सिद्धांत की परिभाषा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 101 में दी गई है, जिसके अनुसार - सबूत का भार किस व्यक्ति पर होगा यह बताया गया है। परिभाषा के अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य को साबित करने के लिए आबद्ध है, तब यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति पर सबूत का भार है। प्रत्येक पक्षकार को ऐसे तथ्य साबित करने होते हैं जो उसके पक्ष तथा दूसरे पक्षकारों के विपक्ष में हो |      साक्ष्य अधिनियम की धारा 101 के अंतर्गत "जो कोई न्यायालय से यह चाहता है कि वह ऐसे किसी विधिक अधिकार या दायित्व के बारे में निर्णय दे, जो तथ्यों के अस्तित्व पर निर्भर है, जिन्हें वह प्राख्यान करता है, उसे साबित करना होगा कि उन तथ्यों का अस्तित्व है। जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य का अस्तित्व साबित करने के लिए आबद्ध है तब यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति पर सबूत का भार है।" इस प्रकार जो पक्षकार किसी तथ्य के अस्तित...

Indian Evidence Act 1872 साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 6 रेस जेस्टे

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साक्ष्य अधिनियम 1872 (Indian Evidence Act 1872) की धारा 6 रेस जेस्टे      साक्ष्य अधिनियम को बनाने का उद्देश्य साक्ष्यों के संबंध में विधि को सहिंताबद्ध करना है , जिसके माध्यम से मूल विधि के सिद्धांतों तक पहुंचा जा सके। साक्ष्य अधिनियम के माध्यम से ही इतने सारे अधिनियम बनाए गए हैं , उनके लक्ष्य तक पहुंचा जाता है। साक्ष्य अधिनियम के बिना अभियोजन चलाने की कल्पना नहीं की जा सकती है। साक्ष्य अधिनियम 1872 में निर्माण से आज तक सबसे कम संसोधन हुए है।      क्या है रेस जेस्टे का सिद्धांत : साक्ष्य विधि में रेस जेस्टे के सिद्धांत का बहुत महत्वपूर्ण है तथा यह सिद्धांत विश्व भर की साक्ष्य विधियों में प्रथक - प्रथक नामों से लागू किया गया है।      साक्ष्य अधिनियम 1872 (Indian Evidence Act 1872) की धारा 6 के अनुसार , एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्यों की सुसंगति - ' जो तथ्य विवाधक न होते हुए भी किसी भी विवाद्यक तथ्य से उस प्रकार संसक्त है कि वे एक ही संव्यवहार के भाग हैं , वे तथ्य सुसंगत है , चाहे वे उसी समय और स्थान पर या विभिन्न समय औ...

Importance of Dying Declaration मृत्युकालिक कथन का महत्व

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भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धरा 32(1) के मृत्युकालिक कथन (Dying declaration) का महत्व भारतीय साक्ष्य अधिनियम में मृत्युकालिक कथन (Dying declaration) का अत्यधिक महत्व है। मृत्युकालिक कथन याने मरने से पहले दिया गया बयान। साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) के अंतर्गत मृत्युकालिक कथन का वर्णन किया गया है तथा मृत्युकालिक कथन को साक्ष्य के अंदर अधिकारिता दी गई है। साक्ष्य अधिनियम में सुसंगत तथ्य क्या होंगे इस संबंध में एक पूरा अध्याय दिया गया है , इस अध्याय के अंदर ही धारा 32 का भी समावेश है। इस धारा के अंतर्गत यह बताने का प्रयास किया गया है कोई भी कथन मृत्युकालिक कथन है तो उसे सुसंगत माना जाएगा। मृत्युकालिक कथन (Dying declaration) व्यक्ति अपने ईश्वर से मिलने वाला होता है , अंतिम समय बिल्कुल निकट होता है , तो ऐसा माना जाता है कि इसे अंतिम समय में वह व्यक्ति अपने मुंह में झूठ लेकर नहीं मरता है। हर व्यक्ति सच कह कर मृत्यु को प्राप्त होता है। मृत्युकालिक कथन को यह माना गया है कि यह अंतिम सत्य है। यदि कोई व्यक्ति मृत्यु के समय अपना कथन दे रहा है जब...