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C.P.C. आदेश 23 नियम 3 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत पारित आज्ञप्ति को समझौते के अविधिपूर्ण होने के आधार पर अपास्त कराने हेतु अनुज्ञेय विधिक प्रक्रिया क्या है?

आदेश 23 नियम 3 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत पारित आज्ञप्ति को समझौते के अविधिपूर्ण होने के आधार पर अपास्त कराने हेतु अनुज्ञेय विधिक प्रक्रिया क्या है? व्यवहार प्रक्रिया संहिता (अनपश्चात् 'संहिता') के आदेश 23 नियम 3( क ) के अनुसार किसी आज्ञप्ति को इस आधार पर अपास्त कराने के लिये वाद संधारणीय नहीं होगा कि जिस समझौते पर आज्ञप्ति आधारित है, वह अविधिपूर्ण था संहिता की धारा 96(3) प्रावधित करती है कि पक्षकारों की सहमति से पारित आज्ञप्ति के विरुद्ध अपील संधारणीय नहीं है। उपरोक्त प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि समझौता आज्ञप्ति के अविधिपूर्ण समझौते पर आधारित होने के आधार पर उसे कहा और किस प्रकार चुनौती दी जा सकती है। संहिता में वर्ष 1976 में किये गये संशोधन के पूर्व आदेश 43 नियम 1 (एम) के अंतर्गत समझौता संबंधी आदेश को चुनौती दी जा सकती थी लेकिन इस प्रावधान को वर्ष 1976 के संशोधन द्वारा विलोपित कर दिया गया। इसके साथ-साथ ही आदेश 43 में नियम 1 (अ) संयोजित किया गया जिसका उपनियम (2) प्रावधित करता है कि समझौते के आधार पर पारित आज्ञप्ति को अपीलार्थी इस ...

N.I. Act क्या न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पराक्रम्य लिखत विलेख अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अन्तर्गत प्रावचित अपराध के लिये दोषसिद्ध अभियुक्त पर रूपया 5000 /- से अधिक अर्थदण्ड अधिरोपित कर सकता है?

क्या न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पराक्रम्य लिखत विलेख अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अन्तर्गत प्रावचित अपराध के लिये दोषसिद्ध अभियुक्त पर रूपया 5000 /- से अधिक अर्थदण्ड अधिरोपित कर सकता है? दाण्डिक मामले में दण्ड अधिरोपित करने के बारे में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी की सामान्य अधिकारिता का उल्लेख दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 29 (2) में किया गया है जो निम्नवत् - "29 (2). The Court of a Magistrate of the first class may pass a sentence of imprisonment for a term not exceeding three years, or of fine not exceeding five thousand rupees or of both." लिखत विलेख अधिनियम, 1881 (अत्रपश्चात केवल “अधिनियम”) में धारा 138 के अपराध के लिये दो वर्ष तक का कारावासीय दण्ड तथा अनादृत चैक की राशि की दुगनी राशि तक अर्थदण्ड का प्रावधान 'अधिनियम' की धारा 138 में किया गया है। 'अधिनियम की धारा 43(1) जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के सदप्रतिकूल उपबंधों के बावजूद न्या.म.प्र.श्रे. को धारा 138 के अपराधों का संक्षिप्त विचारण करने की अधिकारिता प्रदान करती है, निम्नवत् है :- ...

C.P.C आदेश 14 नियम 2 उपनियम (2) के तहत प्रारम्भिक वाद प्रश्न की विरचना किन परिस्थितियों में की जानी चाहिये?

प्रारम्भिक वाद प्रश्न की विरचना किन परिस्थितियों में की जानी चाहिये? प्रारंभिक वादप्रश्न विरिचित कर उसके आधार पर वाद का निराकरण करने के विषय में व्यवहार प्रक्रिया संहिता, 1908 में आदेश 14 नियम 2 उपनियम (2) के प्रावधान सुसंगत हैं, जो निम्नवत् हैं: - Order 14 Rule (2)(ii) - Where issues both of law and of fact arise in the same suit, and the Court is of opinion that the case or any part thereof may be disposed of on an issue of law only, it may try that issue first if that issue relates to - (a) the jurisdiction of the Court, or (b) a bar to the suit created by any law for the time being in force, and for that purpose may, if it thinks fit, postpone the settlement of the other issues until after that issue has been determined, and may deal with the suit in accordance with the decision on that issue." नियम 2 के उक्त प्रावधान सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1976 के द्वारा हुए संशोधन के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आये हैं। उक्त प्रावधानों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि ...

MACC Negligence Principles

Negligence Principles 1       Whether it is necessary for the claimant to prove rash and negligent driving in claim u/s 166 M.V. Act. ? Held Yes. The claim for compensation was filed by parents of the deceased under S.166 and not under S.163A, therefore, the burden to prove an act of rash and negligent driving by the driver of the vehicle was on claimants.  If they failed to discharge it by adducing cogent evidence, then rejection of the claim filed by claimants under S. 166 was proper.  Surinder Kumar Arora and Anr. v. Dr. Manoj Bisla and Ors., A.I.R. 2012 S.C. 1918. The victim of an accident or his dependents has an option either to proceed under S. 166 or section 163–A of the Act. Once they approach the Tribunal under section 166, they have necessarily to take upon themselves the burden of establishing the negligence of the driver or owner of the vehicle concerned.  Oriental Insurance Company Limited Vs Meena Varial, (2007) 3 SCC 4...